कत्यूरी वंश द्वारा बनाया गया एक रात में शिव मंदिर : बैजनाथ मंदिर उत्तराखण्ड
12वीं सताब्दी में बना आज बागेश्वर में स्थित बैजनाथ मंदिर के बारे में बात करेंगे। दोस्तों इस ब्लॉग में आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बताना चाहुँगा की कत्यूरी राजाओं का आवागमन अयोध्या से उत्तराखंड की तरफ 6वीं शताब्दी तक हो चुका था। उन्होंने अपने राज्य को कुर्मांचल कहा। कुर्मांचल यानि भगवान् विष्णु, क्यूंकि भगवान् विष्णु का दूसरा अवतार कूर्म का था। बाद में इसी वजह से इस छेत्र का नाम वर्तमान में कुमाऊँ पड़ गया। कत्यूरी राजवंश की प्रथम राजधानी चमोली ज़िले में जोशीमठ के पास कार्तिकेयपुर में थी। बाद में उन्होंने अपनी यही राजधानी बागेश्वर के गरुड़ तहसील में स्थित बैजनाथ में स्थान्तरित कर दी थी। उस समय में कत्यूरी शासन को उत्तराखण्ड में स्वर्णकाल कहा जाता था। सन 1398 में अंतिम कत्यूरी शासक ब्रह्मदेव, तैमुर लंग से युद्ध के द्वारां मारा गया और इस वंश का फिर पतन हो गया। सन 1398 के बाद बैजनाथ मंदिर फिर से ऐसे ही वीरान रह गया, जिसे आगे चलकर नयी पीढ़ी ने इसका फिर रखरखाव किया। चलिए अब चलते हैं बैजनाथ मंदिर की तरफ।
बैजनाथ मंदिर 1150 में गोमती नदी के किनारे पर बनाया गया था। यहाँ इसे इसलिए बनाया गया क्यूंकि कत्यूरों की ऐसी मान्यता थी की भगवान शिव और पार्वती ने गोमती और गंगा नदी के संगम पर विवाह रचाया था। बैजनाथ मंदिर के वास्तुकला का अगर हम जायजा ले तो यह जागेश्वर मंदिर के समान दिखाई पड़ता है। कत्यूरी राजवंश की वास्तुकला लगभग हर जगह समान दिखती है, जिसका उदाहरण आप उत्तराखण्ड के औसतन प्रत्येक ज़िले में जाकर देख सकते हैं। वैसे बैजनाथ मंदिर असर में एक मंदिर ही है जो की अलग-अलग भगवानों पर समर्पित है। बात करे अगर बैजनाथ के कीर्तिम झील की तो एक ज़माने में यहाँ गोमती नदी बहा करती थी। गोमती नदी के विशाल बहाव के कारण 2007 से 2008 के मध्य पर यहाँ कीर्तिम झील की घोषणा करी और 14 जनवरी 2016 को इसी झील का उद्घाटन किया गया। बैजनाथ मंदिर में एक छोटा सा रहस्य पत्थर भी है। लोगों का मानना है की यह गोलाकार पत्थर एक ज़माने में भीम की गेंद हुवा करती थी। आश्चर्य की बात तो यह है की यह गोलाकार पत्थर नौ उँगलियों के सहारे ऊपर की तरफ उठ जाता है। बैजनाथ मंदिर की अगर हम फिर से वास्तुकला का जायजा ले तो 11वीं शताब्दी में बना यह मंदिर उस ज़माने की तकनिकी को काफी एडवांस करता है जो हमे इस बात से अवगत कराता है की अतीत में भी लोग असल इंजीनियर हुआ करते थे। तो दोस्तों यह था बैजनाथ मंदिर के बारे में कुछ ऐतिहासिक जानकारी और अधिक जानकारी के लिए जुड़े रहिये मेरे इस ब्लॉग “Uttarakhand Gyan Kosh” के साथ। अभी के लिए अलविदा जय जननी जय उत्तराखण्ड।