चंद शासन काल सन ७०० से १७९० तक भाग-१ – कुमाऊँ का इतिहास
जब कुमाऊँ से सूर्यवंशी सम्राटों का भाग्य -सूर्य छिप गया, और ठौर -ठौर में छोटे -छोटे मांडलिक राजा हो गये, तो लोगों ने कहा कि कुमाऊँ का सूर्य छिप गया है। सारे कुमाऊँ में रात्रि हो गई है। पर चंदो के आने पर लोग कहने लगे कि कुमाऊँ में रात्रि हो गई थी, क्योंकि सूर्य छिप गया था, पर इतना अच्छा हुआ कि अब चाँदनी हो गई यानी चंद्रवंशी राजा आ गये। अंधकारमय धरती में फिर से उजियाला हो गया !
चंद कब आये? (राजा सोमचंद सन ७०० से ७२१ )
पं. हर्षदेव जोशीजी श्री फ़्रेज़र साहब को सन १८१३ में एक रिपोर्ट कुमाऊँ के बारे में लिखकर दी थी, जिसमें कहा है-“चंदों में पहले राजा थोहरचंद थे, जो २६ या २७ वर्ष की अवस्था में यहाँ आये थे। उनके तीन पुश्त बाद कोई उत्तराधिकारी न रहने से थोरचंद के चाचा की संतान में से ज्ञानचंद नाम के राजा यहाँ आये।” इस बात को मानने से थोहरचंद कुमाऊँ में सन १२६१ में आये और ज्ञानचंद १३७४ में गद्दी पर बैठे।
पं. रामदत्त त्रिपाठीजी ने लिखा है-“राजकुमार सोमचंद कालिउञ्जर निवासी राजा खड़कसिंह के वंशोत्पन्न थे। सुधानिधि चौबे सरदार और बुद्धिसेन तड़ागी दीवान आदि २४ मनुष्य लेकर प्रतिष्ठानपुर से इस देश को प्रस्थान किया संवत १२६५ में……. “
“ऐसा भी लेख पाया या सुना जाता है कि यह सोमचंद मणकोटी राजा भानजे लगते थे, और अपने मामा से मिलने यहाँ आये थे।”
“यह भी किंवदन्ती है कि बोहरा उर्फ़ बौरा जाति के लोग, जो यहाँ के बहुत पुराने निवासी हैं, कत्यूरी राजाओं द्वारा अपने अधिकार छीने जाने से असंतुष्ट थे। उनमें सर्वश्री विक्रमसिंह, धर्मसिंह, मानसिंह प्रयाग गये। वहाँ झूँसी से सोमचंद नामक राजकुमार को लिवा लाये। इस देश के रीती-नीति-रास्ते बताकर कत्यूरी राजाओं के गंभीरदेव नामक अधिकारी की कन्या से इनका ब्याह कर दिया। १२०० वार्षिक आय की भूमि राजा सोमचंद को दहेज़ में मिली। कुँ. सोमचंद बुद्धिमान, रूपवान, बलवान और लोक-व्यवहार में चतुर थे। कोतवाल छावनी को चम्पावतपुरी राजधानी बना वह स्वयं वहाँ के राजा बन बैठे।”
श्रीअठकिन्सन ने सोमचंद के आने का संवत ६५३ लिखा है, पर पं. रुद्रदत्त पंतजी ने संवत, सन वा शाके सब दिये हैं। उन्होंने काफी छानबीन के साथ अपने नोट लिखे हैं, और उनके नोट ठीक हैं। राजा सोमचंद के आने की तिथि तो ज्ञात नहीं, पर उनके गद्दी पर बैठने की तिथि संवत ७५७ विक्रमीय तथा ६२२ शाके शालिबाहन तदनुसार ७०० सन है। यही लोकप्रचलित वार्ता भी है।
थोरचंद या थोहरचंद से चंदवंश के चलने की भी बात गलत है। हर्षदेवजी कुमाऊँ के धुरंधर राजनीतिज्ञ होते हुए भी पुराने इतिहास से इतने अनभिज्ञ थे, यह जानकर आश्चर्य होता है। तमाम कुमाऊँ के आबाल-वृद्ध जानते हैं कि सबसे प्रथम राजा सोमचंद यहाँ आए। उन्ही से चंद वंश चला। थोहरचंद तो राजा सोमचंद के बाद २३वीं पुश्त में हुए हैं।
चंद कैसे आये?
चंद कैसे आये, और किस प्रकार उन्होंने कत्यूरी, सूर्यवंशी व खस-राजाओं को परास्त कर अपना राज्य यहाँ पर स्थापित किया, इस बारे में यह कहानी प्रचलित है कि राजा सोमचंद चंद्रवंशी चंदेला राजपूत थे, जो इलाहाबाद के पास झूंसी या प्रतिष्ठानपुर में रहते थे। ज्योतिषियों ने एक बार कुँ. सोमचंद से कहा कि उत्तर की यात्रा करने पर उनको लाभ होगा, तो कुँ. सोमचंद कहते हैं, २७ आदमियों को लेकर श्रीबद्रीनारायण की यात्रा को चल पड़े।
कार्की व चौधरी कहा जाता है कि चंद राजाओं के आने के कुछ समय पश्चात आये। उस समय कालीकुमाऊँ के राजा सूर्यवंशी ब्रह्मदेव या वीरदेव कत्यूरी थे। वह राजा सोमचंद के चाल-चलन, रहन-सहन से बहुत प्रसन्न हुए, और उन्होंने अपनी एकमात्र कन्या इनसे ब्याह दी, और १५ बीघा जमीन दहेज़ में दी। कुछ इलाका भावर में भी दिया। चम्पावत में राजा सोमचंद ने अपना एक किला बनवाया, जिसका नाम ‘राज-बुंगा’ रक्खा, और वहाँ पर अपने ही उद्योग से एक छोटा सा राज्य स्थापित किया। इनके चार फौजदार या किलेदार थे, जो अब तक चार आलों के नाम से प्रसिद्ध हैं- (१) कार्की, (२) बोरा, (३) तड़ागी, (४) चौधरी। ये चारों सरदार चार फिरके के लोगों के नेता थे, और ये भी किलों में रहते थे, जिनको आल कहते थे।
राजा सोमचंद ने अपने कालूतड़ागी फौजदार की सहायता से चम्पावत के स्थानिक रावत राजा (खस-राजा) को परास्त कर चम्पावत के निकट के ग्रामों में अपना आधिपत्य जमाया। राजा सोमचंद ने झीजाड़ के जोशी सुधानिधि चौबे को दीवान, शिमलटिया पांडों को राजगुरु, देवलिया पांडों को पुरोहित, पौराणिक मंडलीय पांडों को कारबारी तथा बिष्टों को ‘कारदार’ बनाया। ये ब्राह्मण चौथानी कहलाये, तब से अब तक चौथानी कहे जाते हैं। महर फरत्याल दलों को अपने अधीन कर उनकी सहायता से कुमाऊँ में पंचायती सरकार या नियमबद्ध राज्य-प्रणाली की नीव डाली। इन्हीं महर फरत्याल दलों के हाथ में राजकाज की बागडोर रहती थी। लोग कहते हैं कि राजा सोमचंद ने देश से राष्ट्र-विप्लव तथा आपसी वैमनस्य को दूर करने के लिये ही महर फरत्याल ‘धड़े’ या दल बंधवाये। एक ‘मल्लाधड़ा’, दूसरा ‘तल्लाधड़ा’ कहा गया। मल्ला महर का, तल्ला फरत्याल का कहलाया। इन दो दलों के नेता कोट के महर तथा डुंगरी के फरत्याल माने गये। कालीकुमाऊँ की प्रजा पर यही दो दल चिरकाल से हुकूमत चलाते आये हैं।
राजा सोमचंद उस समय एक छोटे से मांडलीक राजा थे। वह महाराज डोटी को कर देते थे, और उन्हीं के अधीन थे। उस समय डोटी के महाराजा का प्रभाव बढ़ा-चढ़ा था। चंद राजा मामूली जमींदार की हैसियत रखते थे। पर राजा सोमचंद की मृत्यु के समय करीब-करीब सारा कालीकुमाऊँ परगना उनके अधीन हो गया था। इसके अलावा उन्होंने ध्यानीरौ, चोभैंसी सालम व रंगोड़ पट्टियाँ भी अपने राज्य के अधीन कर ली थीं। राजा सोमचंद बड़े धर्मात्मा, संयमी तथा नीतिकुशल पुरुष बताये जाते हैं। २१ वर्ष राज्य कर आप संवत ७७८ शाके ६४३ तथा सन ७२१ में परलोक सिधारे। कत्यूरी राजा ब्रह्म उर्फ़ वीरदेव की कन्या इनको ब्याही गई थी, उनसे कुँ. आत्मचंद युवराज उत्पन्न हुए। वह सन ७२१ में गद्दी पर बैठे।
चंद कहाँ से आये ?
चंदों के झूंसी से आने की बात तमाम कुर्मांचल में प्रचलित है। प्राचीन हस्तलिखित व शावली का एक श्लोक भी यही सूचित करता है।
तो दोस्तों यह था चंद वंश के बारे में भाग-१ जिसमे हमने आपको बताया की चंद राजा कुमाऊँ में कब आये? कैसे आये? और कहाँ से आये? चंद राजाओं के बारे में हम आपको भाग-२ में और भी बातें बताएँगे, जैसे ‘पटरंगवली’, ‘रेशम का कारखाना’, ‘सरदार नीलू कठायत की वीरता’, और सभी चंद राजाओं के बारे में। तो जुड़े रहिये मेरे साथ मेरे इस ब्लॉग से, फिर ,मिलेंगे अभी के लिए अलविदा।
स्रोत : कुमाऊँ का इतिहास