चंद शासन काल सन ७०० से १७९० तक भाग-२
तो दोस्तों जैसा की हमने चंद शासन काल के भाग-१ में बताया था की चंद कब आये? कैसे आये? और कहाँ से आये? साथ ही साथ हमने उसमें राजा सोमचंद के बारे में भी बताया था की कैसे उन्होंने कुमाऊँ में अपना राज-पाठ स्थापित किया। उस भाग में हमने आपको कार्की, बोरा, तड़ागी और चौधरी के बारे में भी बताया था। चलिए इस भाग में हम आपको चंद राजाओं के बारे में राजा सोमचंद के मृत्यु के बाद कि घटनाएँ बताएँगे। तो चलिए राजा सोमचंद के पुत्र राजा आत्मचंद से शुरु करते हैं जिनका कार्य काल सन ७२१ से ७४० तक था।
राजा आत्मचंद (सन ७२१ से ७४० तक )
राजा सोमचंद की मृत्यु के बाद कुँ. आत्मचंद राजा हुए। इन्होंने २१ वर्ष तक राज्य किया। इनके वक़्त में भी राज्य का विस्तार बढ़ाने का काम जारी रहा, और आसपास के सब छोटे-छोटे सरदार इनके दरबार में सलामी को आते थे, कुछ इस डर से कि यह अपनी संगठन-शक्ति से उन्हें निगल न जाये, और दूसरा कारण यह था कि वह कत्यूरी-राजाओं के भांजे थे। यह राजा धर्म-कर्म में अच्छे बताये जाते हैं। इन्होंने अच्छी तरह राज-काज किया। यह सन ७४० में परलोक सिधारे।
राजा इन्द्रचंद (सन ७५८ से ७७८ तक)
राजा पूर्णचंद (सन ७४० से ७५८ तक) के बाद कुँ. इन्द्रचंद राजा हुए। उन्होंने २० वर्ष राज्य किया। “यह राजा बड़ा घमंडी बताया जाता है। अपने को इंद्र के समान समझता था।”
पटरंगवाली
चम्पावत नगरी में झूठी खबर जो फैलती थी, उसे ‘पटरंगवाली’ कहा करते थे। एक पटरंगवाली इस प्रकार कही जाती है-
“राजा इन्द्रचंद रात के वक़्त संध्या पूजा करते समय देवता के ध्यान में लगे थे। पूजा करते-करते बहुत हँसे। जब पूजा समाप्त हुई, तब ‘फुलारा’ व नौकर-चाकरों ने राजा से संध्या के समय इस असाधारण हँसी का कारण पूछा। इस पर राजा पहले तो बहुत संकुचित हुए, पर बाद को बोले कि दिल्ली के बादशाह के यहाँ नाच हो रहा था। उसमें वे भी थे। नाचनेवाली खूब अच्छी तरह नाच व गा रही थी। नाचने में उसके पैर से उसका कमरबंद दबा, और वह गिर पड़ी। यह हाल देखकर सब हँस पड़े। इसी कारण राजा को भी हँसी आई। दिल्ली में पुछवाने पर उस दरबार के अमीर-अमरावों ने कहा कि उस रात को नाच हुआ था। नाचनेवाली गिर पड़ी थी। सब लोग हँसे थे। कुमाऊँ के राजा भी वहाँ थे।” ऐसी-ऐसी ‘पटरंगवाली’ खबरें चम्पावत में खूब उड़ती थीं। अब भी इनको ‘पटोरंग्याल’ कहते हैं। राजा इन्द्रचंद २० वर्ष राज्य करके सन ७७८ में परलोक सिधारे। उनके पुत्र कुँ. संसारचंद राजा हुए।
राजा भारतीचंद (सन १४३७ से १४५० तक)
राजा भारतचंद लोकप्रिय, साहसी, बहादुर तथा चरित्रशाली नृपति बताये जाते हैं। वह अपने राजकाल-विमुख चाचा को गद्दी से उतारकर लोगों को सहायता से गद्दी [पर बैठे थे। श्रीशोड करायत ने न जाने फिर क्या कसूर किया कि कहा जाता है कि इन्होंने उसे भावर में कैद कराया। आज तक मल्ल-खानदान के डोटी के रणिका या रैका राजा ही कालीकुमाऊँ प्रान्त के सार्वभौम राजा यानी महाराजा माने जाते थे। इसी खानदान के छोटे भाइयों के वंशज मल्लाशाही कहे जाते थे। वे लोग बमशाही के नाम से सोर, सीरा में अपना प्रभुत्व जमाये हुए थे। भारतीचंद को यह बात असह्म हुई। उसने कर देना बंद कर दिया। युद्ध ठन गया। भारतीचंद ने एक बड़ी सेना लेकर काली के किनारे बाली-चौकड़ स्थान में डेरा डाल दिया, और डोटी के आस-पास के मुल्क में लूट-मार आरंभ कर दी। बारह वर्ष तक उस ओर संग्राम रहा। इतने दिनों तक पहले कभी सेना किलों के बाहर मैदान में न रही थी।
डोटी-विजय
१२ वर्ष अपने पिता को संग्राम में संलग्न देखकर उनके वीर पुत्र कुँ. रत्नचंद ने कठेर के राजा की सहायता से और सेना एकत्र की, और अपने वीर पिता की सहायता को जा पहुँचे। जैसे अमेरिका से आई नई फ़ौज ने फ़्रांस में मित्र राष्ट्रों के सिर विजय का मुकुट बाँधा, इसी प्रकार कुँ. रत्नचंद की ताज़ी फ़ौज ने भी भारतीचंद के डेरे में नयी जान डाल दी। डोटी के महाराजा की हार हुई। साथ ही जुमला,बजांग व थल के राजा भी दबाये गये, और इस समय से चंद सब प्रकार से स्वतंत्र नृपति हो गये। डोटी के राजा का छत्र उठ गया। सोर-सीरा के राजा सब इनके अधीन हो गये। सन १४५० में राजा भारतचंद ने अपने जीवन-काल ही में अपने पुत्र को राजगद्दी दे दी, और राज-काज से अलग हो गये। राजा भारतचंद १४६१ में स्वर्ग को सिधारे। उन्होंने करीब १३ वर्ष राज्य किया।
राजा भारतचंद की मृत्यु के बाद अर्थात सन १४६२ में राजा नागमल्ल ने शाही खानदान को निकाल अपने को डोटी का महाराजा बना लिया, और राजा रत्नचंद को भी खिराज देने को बाध्य किया, पर राजा गाफिल न थे। इन्होंने फ़ौज ले जाकर नागमल्ल से खूब युद्ध किया। नागमल्ल मारे गए। राजा रत्नचंद ने फिर शाही खानदान के राजा को गद्दी पर बैठाया। कहाँ चंद राजा डोटी के करद राजा थे, किंतु आज तराजू का पलड़ा लौट गया, अब डोटी के राजा इनके अधीन हो गए। इस विजय से प्रफुल्लित होकर राजा रत्नचंद ने जुमला, बजांग तथा थल प्रभृति राज्यों में भी धावा मारा। जुमला के राजा उस वक़्त जागनाथ भट्ट थे। बजांग के राजा का नाम राजा खड़कूसिंह महर था, तथा थल के राजा सूरसिंह महर थे। अब बचने का उपाय न देखा, तो इन तीनों ने मिलकर संधि कर ली, और कुमाऊँ के राजा को यह राज्य-कर सालाना प्रत्येक ने देना स्वीकार किया :-
(१) एक नाभा कस्तूरी, (२) एक धारायु (कमान), (३) तीरों से भरा हुआ तरकस, (४) एक घोड़ा, (५) एक बाज। यह राज्य-कर तीनों मुल्कों के राजा हमेशा चंद-राजाओं को देते रहे। इसी कारण चंद के राज्य-शासन के अंत तक बजांग का राजा चंदों के दरबार से किल्लत पाकर गद्दी पर बैठता था। १८वीं शताब्दी में ये छोटे-छोटे राज्य विस्तृत नेपाल राज्य में शामिल हो गए। तब से यह राज्य-कर बंद हो गया।
तो दोस्तों वैसे लिखने को तो बहत है चाँद वंश के बारे में परन्तु ब्लॉग में वो सब लिख पाना संभव नहीं हैं। चंद शासन काल की कुछ बाते में आपको चित्र माध्यम से बताऊँगा। आसा करता हूँ आप जान पाए। तो इस ब्लॉग में बस इतना ही जुड़े रहिये मेरे साथ मेरे इस ब्लॉग से धन्यवाद। चित्र निचे दिये गए हैं।