राजा बेणु व पृथु की कथा : उत्तराखण्ड राज्य

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राजा बेणु व  पृथु कथा : उत्तराखण्ड राज्य  

    ऋषि अत्रि से राजा अंग हुए और उनसे बेणु। बेणु ने पृथ्वी को सताया। जप, तप, होम, यज्ञ, सब बंद कर दिये। उसने कहा कि राजा ही ईश्वर है। उसकी पूजा होनी चाहिए, अन्य की नहीं। ऋषियों ने उसे मार डाला, और उसके शरीर को मथने से एक निषाद, दूसरा पृथु दो प्राणी उत्पन्न हुए। निषेद से दस्यु हुए और पृथु पृथ्वी के राजा हुए। बेणु के अत्याचार से सब वनस्पतियाँ लुप्त हो गई। पृथु ने पृथ्वी को डाँटा कि वह वनस्पतियों को फिर से उत्पन्न करे। पृथ्वी ने डर से गाय का रूप धारण कर सब देवताओं से सरण माँगी। किसी ने न दी, उल्टा पृथु के पास भेजा।पृथु ने इस शर्त पर पृथ्वी को सरण देने को कहा कि वह वनस्पतियों को फिर से उत्पन्न करे। पृथ्वी ने कहा कि राजा पर्वतों को हटा दे, क्योंकि वे वनस्पति की उत्पत्ति को रोकते हैं। 

    तब पृथु ने अपने धनुष से पहाड़ों को उखाड़ा और एक दुसरे पर इकट्ठा किया, धरती को हमवार बनाया, और उसका नाम  रक्खा। इस अभिप्राय से कि धरती मनुष्य के वास्ते फिर से भोजन उत्पन्न करे, पृथु ने स्वयंभूमणु  नाम की कामधेनु बनाई, और अपने हाथ से पृथ्वी से सब पौधे व वनस्पतियाँ उत्पन्न की, और रात-दिन उसको दुहते रहे। जिससे पृथ्वी दुखी होकर ब्रह्मा के पास गई। ब्रह्मा पृथ्वी को विष्णु व शिव के पास ले गये। विष्णु भगवान् ने कहा कि वह क्या चाहती है। पृथ्वी ने कहा कि उसकी मुक्ति तभी सकती है , जब तीनों देवता पृथ्वी में आकर निवास करें। विष्णु भगवान् ने कहा कि उन्होंने अभी दो बार-एक बार अनन्त सर्प के रूप में, दूसरी बार कच्छप के रूप में – पृथ्वी को बचाया है, और वह फिर भी उसकी रक्षा को आवेंगे, यही वह पापों के भार से दबने लगेगी। लेकिन इस समय वे न आवेंगे।

    फिर आकाश-वाणी हुई –“किसी समय  ब्रह्मा का सिर तेरे ऊपर ब्रह्मकपाली में गिरेगा, शिव झांकर पर्वत में प्रकट होंगे, और शिवलिंग नाना स्थानों में स्थापित होंगें, तब ववस्वत वंश में एक भगीरथ राजा होगा, गंगा को पृथ्वी पे लावेंगे। मैं राजा बलि के अत्याचारों से तेरी रक्षा के लिए बावनावतार धारण कर आऊँगा। तब संसार जानेगा कि विष्णु प्रकट हुए हैं। तब तेरे कष्ट दूर होंगे, और पर्वत तुझको अपने बोझ से दबा न सकेंगे, क्योंकि मैं हिमालय का रूप धारण करूँगा, जहाँ नारदादि मुनिगण मेरी कीर्ति का गान करेंगे। शिव कैलाश होंगे, जहाँ गणेशादि देवगण उनका गुण-गान करेंगे। ब्रह्मा विध्यांचल का रूप धारण करेंगे। इस तरह पर्वतों का भार दूर हो जावेगा। ”  

    तब पृथ्वी ने कहा –“तुम क्यों अपने नहीं, किन्तु पर्वतों के रूप में पृथ्वी में आते हो?”

   विष्णु भगवान् ने कहा – “पर्वत के रूप में जो आनंद है, वह प्राणी-रूप में नहीं है, क्योंकि पर्वतों को गर्मी, जाड़ा, दुःख, क्रोध, भय, हर्ष आदि विकार तंग नहीं करते। हम तीनों देवता पर्वत-रूप में लोक-हित के लिये संसार में आवेंगे। ” यह कहकर तीनों देवता अंतर्ध्यान हो गये। पृथ्वी अपने स्थान को गई।

तो दोस्तों यह था राजा बेणु व  पृथु की कथा, अगले ब्लॉग में हम आपको शिव की यागीश्वर (वर्त्तमान जागेश्वर ) में तपस्या की कथा बताएँगे। और साथ-साथ सप्तऋषियों की कथा भी। जुड़े रहिये हमारे साथ https://didibhula.com/ से। नमस्कार !

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